जीवन सत्य है या मिथ्या, यह बहस आध्यात्म की ही नहीं जीवन की भी है.जीवन को आप किस रूप में लेते हैं और उस रूप से क्या आपको वही मिलता है जो आपने चाह था.ज्यादातर मामलों में में अनुभव विपरीत आता है। जो चाह वो मिला नहीं और कई बार तो जो नहीं चाह वह मिल गया। कई बार यह भी हुआ की पूरी कोशिश की पर वह नहीं मिला और कई बार अधि अधूरी कोशिश से भी अप्रत्याशित , जिसकी उम्मीद नहीं थी वह मिला। ऐसा क्यों हुआ। जीवन यदि हमारे व्यवहार का परिणाम है तो जो करें वही मिलना चाहिए। यहीं से इस प्रश्न में मोड़ है। जीवन सिर्फ करने या हमारे स्मृतिजन्य व्यवहार का परिणाम नहीं है। वह यह है भी और इससे भिन्न भी है.उसे जानने के लिए कुछ और भी जानना होगा.
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सत्य भी, मिथ्या भी
Written By राजी खुशी on 23.5.12 | 7:20 am
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