सत्य कल्याणकारी है ऐसा ही कहा और मन जाता है। जीवन के व्यव्हार में कई बार और ज्यादातर बार सत्य से अमंगल होता दिखाई देता है। फिर सोचने में अत है की सत्य कहाँ मंगलकारी या कल्याणकारी है। सत्य तो सुख के बदले में दुःख देता है या उस तरह की ही परिस्थितियां पैदा करता है.इसका कारणयह है के हम सत्य को अपनी सापेक्षता में समझती हैं या सोचते है की सत्य वही है जो हम जानते या समझते है। इसमें वह सब भी सामिल है जो तथ्य के रूप में सत्य को इस्पस्ट करता है.पर सत्य इस सापेक्षता के परे है। वह समग्र के सदर्भ में और समग्र के ही तथ्य में इस्पस्ट होता है. उस समग्र को देख पाना या समझ पाना साधारणतः हमारी परिधि में नहीं होता.जो भी इस परिधि को पा लेता है, वह सत्य को अमंगलकारी या अकल्याणकारी नहीं मानता न अनुभव करता है.यह परिधि सहज ज्ञात नहीं है। इस परिधि को जानने के लिए वे प्रयत्न भी नहीं हो सकते जो जानने के साधारण उपायों से या माध्यमों से किये जाते हैं। वे प्रयत्न तो लगभग वैसे ही पाए जाते हैं जैसे सामने से पर्वत को देखना और फिर बहुत ऊपर आकाश से पर्वत को देखना.और सिर्फ ऊपर से ही नहीं चारों और से देखना.
सत्य कल्याणकारी है
Written By राजी खुशी on 23.5.12 | 7:47 pm
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