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जाने क्या तूने कही ....

Written By मनवा on 5.6.12 | 1:51 pm

जाने क्या तूने कही ? जाने क्या मैंने सुनी ? बात बन्ध ही सी गयी | कभी -कभी ऐसा होता है की आप अपनी बात दूसरे तक पहुंचा तो देते हैं लेकिन वो आपकी बात समझ ही नहीं पाता | तो कभी -कभी आपको समझ नहीं आती की अगला क्या कहना चाहता है | अपनी बात को सामने वाले तक उसी रूप में पहुंचा देना | जिस रूप में आपने उसे महसूस किया है | ये इक़ हुनर है | एक दूसरे से संपर्क स्थापित करने के लिए | इस समाज में रहने के लिए हमें एकदूसरे की बात समझनी जरुरी होती है | अपनी बात को समझाने के  लिए हम भाषा को माध्यम बनाते हैं | इस सम्प्रेषण की क्रिया में सिर्फ शब्दों का आदान -प्रदान ही नहीं होता , अपितु क्रियाओं का भी आदान-प्रदान होता है | जैसे जब हम बाजार में कुछ खरीदने जाते हैं , तो जरुरी नहीं कि ग्राहक और विक्रेता के बीच लम्बी बात हो | दोनों आपस में कोई शब्द कहे बिना भी  सम्प्रेषण करते हैं | 
सम्प्रेषण के लिए आपसी समझ बहुत मायने रखती है |आप सामने वाले को क्या समझते है ? उसे भरोसमंद,चतुर और जानकार ?या उसके बारे में बुरी राय रखते है की वो बेवकूफ है कम दिमाग है आदि ....इसके अलावा सम्प्रेषण के लिए सक्रियता भी अनिवार्य है | मनुष्य द्वारा सृजित कोई भी वस्तु { घर , कविता , कहानी , पुस्तक , गीत या लगाया कोई पेड़ आदि } ये सब मनुष्य की रचना है | मनुष्य द्वारा किसी भी चीज की रचना कर लेना ही काफी नहीं  हो जाता | उस चीज के जरिये वो अपनी विशेषताओं को , अपने व्यक्तित्व को , दूसरों तक पहुंचाता है | समाज में अपनी हैसियत भी जताता है | क्योकिं उसकी बनायीं हुई वस्तु  दूसरे लोगो के लिए बनायीं गयी है, और यही वस्तु दूसरे लोगो के बीच सम्बन्ध स्थापित करती है | और सम्प्रेष्ण को सार्थक बनाती है | 
लोगों के बीच सम्प्रेषण की तुलना सिर्फ वस्तुओं और तार- संचार मात्र से भी नहीं की जा सकती , जिसमें सिर्फ शाब्दिक संदेशों  का विनिमय मात्र होता है | इक़ स्वस्थ सम्प्रेषण में भावनाएं भी अपना काम बखूबी करती है | बिन भावनाओं के तो शब्द खोखले होते है | कहते भी है ना दिल से कही बात ही दिल तक जाती है | 
सामान्यतः एक ही व्यक्ति अलग -अलग परिस्थितियों में अलग -अलग भूमिकाएं निभाता है | उदाहरण के लिए ,एक ही व्यक्ति कारखाने में प्रबन्धक, डाक्टर के लिए रोगी (यदि वो बीमार  है तो } घर में माँ का आज्ञाकारी बेटा , मेहमानों के लिए अच्छा मेजबान, आदि सभी कुछ हो सकता है |एक व्यक्ति जब अलग -अलग रूप धर कर समाज में रहता है | तो  उसकी  भूमिकाओं की अनेकता बहुत बार उनके बीच टकराव , पैदा कर देती है | उदहारण के लिए इक़ टीचर के रूप में जब कोई व्यक्ति अपने बेटे में कमियाँ देखता है तो उसका रुख कठोर हो जाता है | लेकिन जब उस बच्चे को वो अपने बेटे के रूप में देखता है तो क्रोध शांत हो जाता है |
व्यक्ति की वास्तविक इच्छाएं कुछ भी क्यों ना हो , उसके परिवेश के लोग उससे एक निश्चित ढंग के व्यवहार की अपेक्षा करते है | समाज भूमिका -निर्वाह के ढंग का नियंत्रण और मूल्यांकन करता है | वो भी अपने तरीके से |
बहरहाल हम सभी जानते,समझते हैं, की सम्प्रेषण की प्रक्रिया सफल तभी मानी जाती है| जब उसमे भाग लेने वाले पक्षों का व्यवहार उनकी पारस्परिक अपेक्षाओं को पूरा करता है | दूसरे की अपेक्षाओं का पूर्वानुमान और उनके अनुरूप व्यवहार करने की व्यक्ति की क्षमता तथा योग्यता ही उसे सफल व्यक्ति बनाती है | यानी व्यक्ति का व्यवहार कुशल होना उसकी सफलाता की गारंटी है |
बेशक , इस बात का ये मतलब बिलकुल नहीं है की , व्यवहार कुशल आदमी को हमेशा हर हाल में और हरेक के साथ विन्रम ही दिखाना चाहिए | अगर सिद्धांत और विश्वास के ऊपर आंच आने लगे तो व्यक्ति को अपने व्यवहार में कठोरता लानी ही होती है | फिर भी दैनिक जीवन में दूसरों लोगों की अपेक्षाओं का गलत अर्थ लगाना  उनकी अवहेलना करने को व्यवहार कुशलता की कमी ही माना जाता है | 
लेकिन हमें हमेशा याद रखना चाहिए की व्यक्तियों के किसी भी समूह में सभी जीवित व्यक्ति होते हैं | और उनमे से  हर इक़ की भावनाओं का समुचित ध्यान रखा जाना चाहिए | समूह में परस्पर मनोवैज्ञानिक सम्पर्क की ज़रा सी कमी के भी चाहे वह थोड़े समय के लिए ही क्यों ना हो , गंभीर व अप्रत्याशित परिणाम निकल सकते हैं | इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए की हम हमेशा दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखे | ना हमारी बात से कोई आहत हो और ना हमें कोई आहत कर सके | अपनी बात ठीक तरीके से समझा सके और दूसरों की बात को भी हम भलीभांति समझ सके | की कोई ये ना कहे जाने क्या तूने कही ....ममता व्यास , भोपाल से 

1 comments:

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मंजुला ने कहा…

hamesha ki tarah achhi hai ........sada mushkurati raho ,likhti raho..


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