बचपन में हम सभी ने इक़ कहानी सुनी थी | इक़ राजा था जिसके सर पे इक़ सींग था | ये बात सिर्फ उसका नाई { बाल काटने वाला } ही जानता था | राजा के कठोर आदेश थे, की ये बात कभी भी किसी से नहीं कही जाए | मनोविज्ञान कहता है| की आप अपने दिल और दिमाग से जिस काम को करने के लिए मना करेगे | वो वही करेगा | नाई ये राज कब तक अपने मन में रखता | इक़ दिन वो अपनी बात को किसी के साथ बांटने के लिए तड़प उठा | और घने जंगल में इक़ पेड़ से वो बात कह दी | बरसों बाद उस पेड़ की लकड़ी से तबले , ढोलक बनाये गए | और किसी संगीत कार ने जब उन्हें राजा के सामने बजाया तो | जानते है क्या हुआ ? तबला , ढोलक सभी ने नाई की बात को दोहरा दिया | की राजा के सर पे सींग है | राजा हैरान और नाई परेशान की ये क्या हुआ | कैसे हुआ |
तो क्यों चुप रहा जाए | अपनी भावनाओं के रेगिस्तान में रेत -रेत होकर होकर क्यों बिखरे ? जैसे है वैसे क्यों ना दिखे | दिन भर हँसने , हंसाने का ढोंग करना और रातों को छुप छुप के रो लेना क्या ठीक है ? टूट ना जाये इसलिए लोहे के कवच पहन लिए | गिरने के डर से जमीन पे ही सो गए | क्यों ? प्रेम में होना चाहते है | प्रेम में गिरने से डरते है | कहने से डरते हैं | अपने सर पर हमेशा अपने अहम् का मुकुट सजाये फिरते हैं | कवि है तो कविता की ओट में छुप जायेगे | दार्शनिक है तो दर्शन में | जोगी , तो जोग में | योगी है तो योग में | जादूगर है तो जादू में | खिलाड़ी है तो खेल में | लेकिन साहब - खेल के बाद , तमाशे के बाद , महफ़िल उठ जाने के बाद , भीड़ के चले जाने के बाद फिर अकेले | अपनी अनुभूतियों के साथ | हजारों की भीड़ में क्यों तन्हा हो गए ? इसलिए की किसी से कहते नहीं कुछ भी | खुद को क्यों छिपाए ? अच्छा लगे तो कह दे | बुरा लगे तो भी कह दे | जो अनुभव करे उसे व्यक्त करे | अनकहे के बोझ तले दब कर क्यों मरे ? ये चुप सी क्यों लगी है ? अजी कुछ तो बोलिए । खोलो दिलों के बंधन , अजी कुछ तो बोलो ----ममता व्यास , भोपाल
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