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जिन्दगी है शहद की मानिंद ...

Written By मनवा on 25.4.12 | 2:05 pm


पिछले दिनों , किसी बगीचे में इक बहुत बड़े वृक्ष को देखा मैंने | उस विशाल वृक्ष पर इक सुन्दर लता यानी बेल लिपटी हुई थी | बहुत देर तक उन्हें देखती रही और ये तय नहीं कर पायी की कौन ज्यादा सुन्दर है | और कौन किसकी सुन्दरता  बढ़ा रहा है | वृक्ष ने उस कोमल लता को अपना  सानिध्य दिया   है | या बेल ने खुद को समर्पित कर दिया वृक्ष पर | मैंने खुद ही मान लिया की कोई इक नहीं , दोनों ही सुन्दर हैं | लेकिन इक दूजे की वजह से | 
कुछ दिनों बाद , देखा की वृक्ष पर कोई बेल नहीं थी | बेल टूटी हुई सी सड़क किनारे पड़ी थी | और वृक्ष भी सूना- सूना सा डरावना सा लग रहा था | बगीचे के माली से पूछने पर उसने बताया की बेल को कीड़े वाला कोई पौधों का रोग हो गया था | कहीं वृक्ष भी इससे प्रभावित ना  हो जाए | इसलिए बेल को ही तोड़ कर फेंक दिया गया था | 
मैं बहुत देर सोचती रही | माली को , रोग का इलाज करना था | उसे ठीक करना था | उसने तो वृक्ष को बेल से अलग ही कर दिया | क्यों किया उसने ऐसा ?
दोस्तों , असल जिन्दगी में भी तो हम आजकल यही कर रहे है ना | आये दिन टूटते विवाह | बढ़ते तलाक | ह्त्या , आत्महत्या |  और किसी को चोट पहुंचाने या उसे जिन्दगी से अलग कर देने या खुद को दुख देकर हम हर समस्याओं के हल ढूंढ़ रहे है | 
लेकिन , हल तो फिर भी नहीं मिलते हमें | अगर , किसी को जिन्दगी से अलग कर देने से या खुद को किसी की जिन्दगी से दूर करने से ही समाधान हो जाते तो आज दुनिया में कितनी शान्ति होती | 
क्या हमने कभी सोचा| की हमारे साथी , मित्र , भाई , बहन या कोई भी आसपास रहने वाले व्यक्ति का व्यवहार हमारे  प्रति , समाज के प्रति अचानक से क्यों बदल गया ?जो कल तक जान से ज्यादा प्रेम कर रहा था | वो आज जान का दुश्मन कैसे हो गया ? चलिए सीधी बात करती हूँ |
पिछले दिनों , विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस था | और इस संगठन के अनुसार सारी दुनिया में मानसिक रोगियों की संख्या इकदम से बढ़ गयी है | और इन्हीं मानसिक रोगों की वजह से रिश्तों में दरारे  आ रही हैं | 
आधुनिकता की दौड़ | इकदूजे को नीचा दिखाने की होड़ | पैसा | झूठी शान | दिखावे की जिन्दगी ने | और समय की कमी ने लोगों को  बहुत सी मानसिक बीमारियाँ दी है | जैसे -फोबिया , मूड डिस-आर्डर , काग्नेटिवडिस -आर्डर , साइजो-प्रेनिया ,  अल्कोहल पर निर्भरता और डिप्रेशन |ये तो सिर्फ चंद नाम है | फेहरिस्त बहुत लम्बी है | 
इन रोगों की वजह से आये दिन समाज में , रिश्ते उलझ रहे है | टूट रहे हैं | कारण समझ नहीं आते लेकिन ये हो रहा है |
दरअसल , देह के रोग दिखते हैं | उसके लक्षण भी नजर आते हैं | लेकिन मन के रोग नहीं दिखते | कोई ये कैसे बताये की वो कितने किलोग्राम दुखी है | की उसके मन पर दर्द की कितनी दरारें हैं | उसके दिमाग में कितनी अशांति है | उसे नापने के लिए कोई पैमाना नहीं किसी डॉक्टर के पास | 
मन के विकारों को तो रोगी अपने विचारों , भावनाओं तथा व्यवहार से ही प्रकट करेगा ना ?
ये बात तो सिर्फ और सिर्फ वही व्यक्ति जान सकता है | जो बहुत करीब हो | जो उसे समझे | लेकिन किसी के मन को समझना क्या आसान है ? मन का  कोई रूप नहीं | आकर नहीं | सीमाएं नहीं | और इससे बड़ी बात ये की किसी के पास अब धैर्य नहीं | समझ भी नहीं | कोई किसी को समझाना नहीं चाहता और ना ही समझना   चाहता है | 
किसी के मन की विचित्र स्थिति को भांप लेना | और विवेक से समाधान निकालना कोई नहीं चाहता | उलटे इसे पूर्वजन्मों के पाप | टोने टोटके | भूत- प्रेत और ग्रहों का फेर  कहा जाता है | और पंडित , तांत्रिक , ओझा खूब इसका फायदा उठा रहे हैं | रत्न , ताबीज , यंत्र और फेंगशुई का कारोबार खूब चल निकला है | हाँ कुछ लोग चिकित्सा का सहारा भी लेते है | पर सिर्फ दवा से मन के घाव कैसे भरेगे ?
जरुरत है साथी के व्यवहार में आये असुन्तुलन के पीछे छिपे दर्द को देखने की | ना की दोषारोपण करने की | मन के रोगी को प्रेम की जरुरत होती है | हमारे स्नेह की | आत्मीयता की | हमदर्दी की | सहानुभूति की | और जब ये नहीं मिलता तो मन की हालत बिगड़ती जाती है |
इसी के चलते , हर व्यक्ति मन की सूखे टुकड़े को हरा करने के प्रयास करने लगता है |  कोई तो मुझे समझे | कोई तो मन के तल तक पहुंचे | ये विचार ही नए नए रिश्ते बनने -बनाने का सबब बनता है | 
हम घर का सामान , कपडे , जूते, कार , गहने  खरीदते समय उन चीजों को सौ बार उलट पलट कर देखते हैं | लेकिन जो साथी आपके साथ इक पूरी जिन्दगी बिता रहा है | उसके चेहरे को गौर से देखते तक नहीं |
जिन्दगी की भागदौड में कौन कितने पीछे छूट गया ज़रा देखीये तो सही | कौनसा सिरा उलझ गया और कौन कहा भटक गया देखे तो ज़रा | आखरी बार कब हँसे थे जी खोल कर सोचे ज़रा | किसी के होठों पर कब मुस्काने आई हमारी वजह से | याद है ? 
वृक्ष पर लिपटी लता वृक्ष के कारण सुन्दर नहींवो इसलिए सुन्दर है की वृक्ष उसे रोकता नहीं फैलने से | लिपटने से | जैसे साहिल से सट कर जो दरिया बहता है उसे बहने दिया जाए हम क्यों रुख मोड़ते है | बहते दरिया का |  मन की गांठे , प्रेम के स्पर्श से ही खुलती है | दो बोल प्यार के जादू भरा असर करते है | और दो कड़वे बोल किसी का दिल छलनी कर देते है | लेकिन किसी भी डाक्टर के पास  ऐसी कोई मशीन नहीं जिसमे ये छेद या सुराख़ दिखे | 
तो क्यों ना  हम , किताबों की जगह किसी का मन पढ़े | सामानों की जगह दिलों की देखभाल करे | दीवाली पर हजारों दिए रोशन करने से बेहतर है | अपने मन में प्रेम की लों जलाये | और अन्तिम बात जगजीत की गजल के साथ की " शहद जीने का मिला करता है थोड़ा -थोड़ा | " इस शहद को संभाल के रखे हम | है ना ? जिन्दगी  है शहद की मानिंद ...                           ममता व्यास, भोपाल 

1 comments:

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RJV ने कहा…

अपने मन में प्रेम की लों जलाये | और अन्तिम बात जगजीत की गजल के साथ की " शहद जीने का मिला करता है थोड़ा -थोड़ा | " इस शहद को संभाल के रखे हम | है ना ? जिन्दगी है शहद की मानिंद


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