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जो भी प्यार से मिला .............

Written By मनवा on 15.10.12 | 4:03 pm


उस दिन इक़ मित्र मिली बहुत ही गुस्से में थी और दुखी भी , अपने आफिस में उनका अपने बॉस से झगड़ा हुआ था | उनका कहना था की बॉस ने  सबके सामने उनके आत्म-सम्मान को चोट पहुंचाई है और अब वो बॉस का जीना दूभर कर देंगी | कई बार प्रेम संबंधों में भी यही होता है , और अन्य रिश्तों में भी , हम छोटी छोटी बातों को अपने आत्मसम्मान से जोड़ कर देखने लगते है | रिश्ते टूटे तो टूटे अहम् पर आंच ना आये | घरों से , दफ्तरों से उठकर अब ये कीड़ा सोशल साइट्स पर भी रेंगने लगा है | फेसबुक की दीवार को साहित्यकारों ने लेखकों ने कवियों ने अपने आत्मसम्मान से जोड़ दिया है | उनकी लिखी बात , उनके लिखे स्टेटस पर अगर कोई दूसरा व्यक्ति उनकी तारीफ़ में कसीदे पढ़े तो सब ठीक , जो अगर उसने अपने निजी विचार व्यक्त कर दिए तो , आत्मसम्मान  को ठेस लग जाती है | और फिर दीवार कुरुक्षेत्र का मैदान बन जाती है | 
अक्सर लोग अपने पहनावे , आवाज , अपने नाम या चाल -ढाल ,हेयर स्टाइल को लेकर भी इतने सचेत रहते है की , कोई मजाक में इन पर कमेन्ट कर दे तो झगड़े की नौबत आ जाए | क्या हमारा आत्मसम्मान इन छोटी छोटी चीजों से मिलकर बना है | क्या अहमियत है इन चीजों की जीवन में ? क्यों हमारा ध्यान बार -बार इन चीजों की तरफ ही जाता है | सभी हमें देख रहे है |सब हमारे ही दुश्मन हैं , सब की निगाह हम पर ही क्यों है , सभी हमसे जलते है या मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है , या सभी मेरे खिलाफ साजिश करते है |  ये संदेह , ये शंका कभी भी हमें सहज नहीं रख सकती | जब  हम किसी चीज के प्रति बहुत ज्यादा ही सचेत होने लगते हैं | इससे हमारे व्यवहार में असहजता आ जाती है | हम जिन चीजों पर बिलकुल ध्यान नहीं देना चाहते उसी पर  बार -बार ध्यान जाता है | हम परेशान  हो जाते हैं की , हम कैसे अपना ध्यान हटा ले ताकि चीजे या घटनाएं हमें  परेशान ना करे | 
अक्सर किसी चीज पर ध्यान देना या ना देना , किसी चीज  के प्रति सचेत होना , या न होना ,उसके प्रति  हमारे रवैये पर निर्भर करता  है | हम  किसी वस्तु विशेष या व्यक्ति विशेष के प्रति लगाव या महत्वपूर्ण रवैया रखते हैं , तो हम कितनी भी कोशिश कर लें , हमारा घ्यान उस तरफ बरबस जाता ही रहेगा | हम उसके प्रति सचेत होते ही रहेगे | इसका सीधा सीधा मतलब यह हुआ कि चीजों के प्रति  जब तक हमारा नजरिया नहीं बदलेगा , सोच नहीं बदलेगी और रवैया नहीं बदलेगा उन पर ध्यान जाना कम नहीं होगा | सम्बन्धों से , लोगों से या चीजों से  घबरा कर उनसे दूर भागना | बातचीत बंद कर देना | उनसे ध्यान हटाने के लिए नशे में डूब जाना ये पलायन है | ये समस्या का हल नहीं और ना ये समस्या का निपटारा ही है |
.अक्सर हम ज़रा -ज़रा सी बातों पर नाराज हो जाते है | कोई हमारा अगर मजाक उड़ा दे तो हमें क्रोध आ जाता है | हम सामने वाले को नीचा दिखाने की सभी कोशिशे कर डालते हैं | जब तक उसे जी भर कर कोस ना ले मन शांत नहीं होता ..कभी सोचा है , ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए की हमने अपने अहम् को , अपनी इज्जत को , अपने आत्मसम्मान को बहुत अधिक बड़ा बना लिया है | उसे बहुत अधिक महत्त्व दे दिया है | हम किन्हीं भी परिस्थितियों में इनके साथ समझौता करना नहीं चाहते | हम हमेशा  इस बात के लिए सचेत रहते हैं की चाहे जो हो हमारे अहम् पर आंच न आये | जब -जब भी हमारी इज्जत , अहम् और आत्मसम्मान पर कोई खतरा हमें दिखता है , हम असहज हो जाते हैं |  थोड़ा आगे बढे तो, हमें गुस्सा आने लगता है | और अचानक से हमारा व्यवहार बहुत उग्र हो जाता है |
हम कभी भी नहीं चाहते की हमारा व्यवहार उग्र हो , लोग हमें कठोर समझें या अहमवादी समझे , लेकिन फिर भी हम इस स्थिति से खुद को बचा नहीं पाते | हम ऐसी स्थिति से बचने का प्रयास करते हैं , अपने क्रोध को दबाने की कोशिश करते हैं | दूसरी जगह पर दूसरी चीजों  पर ध्यान लगाने की कोशिश करते हैं | सिगरेट का सहारा लेते हैं या संगीत का भी लेकिन सब बेकार के टोटके  सिद्ध होते हैं | 
दरअसल , हमने मूल कारण को नहीं जाना | अपने क्रोध की , प्रेम की ,  भावनाओं को दबा दिया और इन्हें दबाने से हमने उनके तात्कालिक प्रदर्शन को तो रोक दिया लेकिन इसकी प्रतिक्रयास्वरूप  जो पैदा हुआ वो अवसाद होगा | हमने हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रया को दबाया , उसका दमन किया और बदले में गहरा अवसाद पाया | सिर्फ अवसाद ही नहीं बहुत सी मनोवैज्ञानिक समस्याएं बुला ली | पहले भावनाओं का दमन , फिर क्रोध और अंत हुआ अवसाद पर ..है ना ? 
अब सवाल ये की , कैसे बचे इस समस्या से , अव्वल तो ये एक लम्बी और कठिन प्रक्रिया है लेकिन समाधान भी खोजना जरुरी है |  मैं फिर उसी बात पर आती हूँ की , हमें अपने स्वभाव , अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियां , कंसंर्स , हमारे रवैयों से आन्तरिक लड़ाई करनी पड़ेगी | हमें समझाना होगा खुद को , की हमारी इज्जत , अहम् और आत्मसम्मान क्या इतनी बड़ी चीज हो गए  की हम उसके आगे किसी को कुछ नहीं समझ रहे | इनकी हमारे जीवन में क्या अहमियत है | समाज और परिवेश के साथ अंतर्संबंधों में इनकी क्या भूमिका होनी चाहिए | हमें सीखना होगा की ,कब हमारा आत्मसम्मान महत्वपूर्ण है , और कब बाकी चीजे , मतलब सामने वाला व्यक्ति , उसके साथ हमारे सम्बन्ध | कहीं ऐसा तो नहीं की हमने अपने आत्म-सम्मान को , अपने अहम् को बचाने में कोमल रिश्तों की बलि दे दी | हमें खुद से पूछना होगा की क्या वास्तव में हमारा आत्मसम्मान छुई मुई जैसा है , जिसे कोई भी अपने स्पर्श से मुरझा कर चला  जाए | क्या हमारा आत्मसम्मान इससे अधिक लचीला और मजबूत नहीं होना चाहिए , जिस पर किसी की बात का कोई असर न पड़े | किसी की क्या बिसात जो हमें तोड़ जाए | हमें हमारे आत्म-सम्मान के प्रति हमारे कंसंर्स , संबंधों को समझना  और बदलना होगा |
दूसरी बात  , हमें ऐसे हालातों में अपने प्रतिक्रियात्मक रवैयों को भी समझना होगा | हमें देखना होगा की हमारी प्रतिक्रियाएं हमारा रिएक्शन कहीं हमारी छवि तो खराब नहीं कर रहा | हमारे व्यक्तित्व की किसी कमजोरी को इंगित तो नहीं कर रहा | हमें सभी के सामने हंसी का पात्र तो नहीं बना रहा | हम कहीं कोई गैर जिम्मेदाराना व्यवहार तो नहीं कर बैठे | है ना ? 
जब हम आत्मसम्मान के प्रति हमारे कंसंर्स और हमारे रवैये में धीरे -धीरे ही सही उचित बदलाव कर पायेगे |  तब हम देखेगे की  हमारे सामने -कितनी भी विपरीत स्थिति हो हमने क्रोध नहीं किया | हमने खुद पर नियंत्रण करना सीख लिया  |  यानी की जिन चीजों से अभी तक आपको तकलीफ होती थी | जो चीजे आपको बार -बार  असहज बना रही थी | हमने उनके प्रति अपना सम्बन्ध बदला और रवैया भी ..इससे लाभ ये हुआ की हमारा ध्यान अब बार -बार उन चीजों पर नहीं जाता | और हम अब हम सभी चीजों के प्रति सहज हो गए है | और हाँ हमें समाज , रिश्तों और अपने सम्बन्धों के प्रति भी नजरिया बदलना होगा | अपने मन की भी सुने , लेकिन रिश्तों की परवाह भी करे | हमें खुद को सहज बनाना होगा | सरल भी , और आत्मसम्मान को मजबूत करना होगा | जो भी मिले जैसा भी मिले हमें उसे स्वीकार करते जाना है | जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए वाले अंदाज हो हमारे है ना ? -----ममता व्यास , भोपाल 

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